मुबारक बेगम नहीं रहीं।रहना भी नहीं चाहिये था ।कब तक लड़ती रहती ?जब भी उनकी कोई खबर सुनी अभाव,ग़रीबी से लड़ते हुए मदद के दरकार की सुनी ।मुंबई के जोगेश्वरी में एक कमरे के मकान में रहती थी ।बेटा टैक्सी ड्राईवर है ।पति और बेटी की पहले ही मौत हो चुकी है।महाराष्ट्र सरकार की 700 रूपये की पेंशन से झाड़ू पोछा वाली का ख़र्चा नहीं निकल पाता ,कहाँ से उनकी दवाइयों का ख़र्च निकलता होगा ? ऐसी व्यवस्था में उन्हें जीने का क्या हक़ जहाँ वो अपनी जवानी में अकूत पैसा इक्ट्ठा नहीं कर पाई ? ऐसा कला भी किस काम की जो दो जून की रोटी,छत की व्यवस्था पूरा करने में ख़र्च हो जाए ?
एक हफ़्ते पहले की उनकी खबर पढ़ी थी कि किसतरह महाराष्ट्र के संस्कृति मंत्री विनोद तावडे के उनका ख़र्च उठाने के आश्वासन के बाद पहले से मिल रही मदद भी बंद हो गई और तावडे जी की मदद तो पहुँची ही नही ।भारत सरकार के मंत्री और निधन के बाद टिव्वट संवेदना जारी करने वालों फ़िल्म से जुड़ी संस्थानों को तो छोड ही दीजिये ।
उनके चाहने वाले उनकी थोड़ी बहुत मदद कर देते थे जिनसे उनका गुज़ारा चलता था ।राजकुमार केसवानी बतातें है कि कैसे भोपाल का हलवाई वाला जो उनके गानों का शौक़ीन रहा है अपनी हैसियत के हिसाब से उनकी मदद कर देता है ।इसी तरह उनका गुज़र बरस चल रहा था ।लेकिन एक फ़िल्म से 300 करोड़ की कमाई करने वाले उनके एक भी चाहनेवाले के पास कमबख़्त दिल नहीं था जो उनके अंतिम दिनों की मुफ़लिसी ख़त्म कर सकता था ।
1950 से 1970 का वो दशक था जब एसडी बर्मन,शंकर जयकिशन,ख्ययाम जैसे दिग्गजों के साथ उन्होने जुगलबंदी की । मुबारक के चाचा फ़िल्मों के
शौक़ीन थे और वो चाचा के साथ फ़िल्में देखने जाया करती थी ।फ़िल्में देखते देखते मुबारक सो भी जाती थी लेकिन जब सुरैय्या के गानों की खनक कानों में गूँजी तो मानों नींद उड़ गई ।उनकी आवाज़ से उनके चाचा बहुत ख़ुश थे ।मुबारक के पिता चाचा के कहने पर उन्हें आँल इंडिया रेडियो स्टेशन ले गए ।वहाँ वे गाने लगी ।थोड़े ही दिन में उन्हें गाने के आँफर मिलने लगे ।पहला गाना गाया १३ साल की उम्र में ।फ़िल्म थी आईये ,गाना था मोहे आने लगी अँगड़ाई और आओ चले वहाँ ”
वो पढ़ी लिखी नहीं थी ।एक बार का क़िस्सा है बप्पी दा ने उन्हें गाने के लिए बुलाया ।धुन सुनाई और काग़ज़ पकड़ा दिया ।मुबारक बोली -मुझे तो पढ़ना ही नही आता ।बप्पी सुनकर हैरान हो गए ।पूछे गाती कैसे हो ?बेगम ने कहा दिल से याद कर ।वो रूह में उतरने वाली आवाज़ थी ।किसी मंदिर की घंटी की तरह जो दूर कहीं बज रही हो ।
सवाल ये नहीं कि मुबारक को सरकारी मदद मिली या नहीं ,सवाल ये है कि हम किस तरह के देश हैं जहाँ साहित्य, कला,संस्कृति,फ़िल्म के लिए हमारी सरकारों में थोडी भी संजीदगी नहीं ।कुछ अवार्ड ,पुरस्कार देकर हम निश्चित हो जाते है कि हमने अपना काम पूरा कर लिया ।कितनी ही ऐसी कहानियाँ हम रोज़ पढ़ते हैकि प्रेमचंद का घर गिरने वाला है निराला का बिकने वाला है लेकिन संरक्षण देने वाले पर कोई असर नहीं पड़ता ?क्लर्क घूस लेकर करोड़ों कमा लेता है मुबारक बेगम गाकर भी जीने लायक नहीं कमा पाती ?
चलिये कोसने से कोई व्यवस्था नहीं बदलने वाली ,मुबारक बेगम की याद में उनके गाए गाने सुनिये
1. देवता तुम हो मेरा सहारा (दायरा)
2. कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी
3. नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले (जुआरी)
4. वो ना आएंगे पलट के(देवदास)
5. मुझको अपने गले लगालो(हमराही)
6. हम हाले दिल सुनाएंगे(मधुमति)
7. बे मुर्रवत बेवफा(सुशीला)
8. इतने करीब आके भी क्या जाने किसलिए(शगुन)
9. ए जी ए जी याद रखना सनम(डाक मंसूर)
10. वादा हमसे किया दिल किसी को दिया (सरस्वतीचंद्र)